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Showing posts from March, 2020

बढ़ती जनसंख्या या जनसंख्या विस्फोट

  बढ़ती  जनसंख्या या जनसंख्या विस्फोट भारत 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजाद हुआ। तब भारत की आबादी करीब करीब 25 से 30 करोड़ थी। लेकिन आज आजादी के 70 वर्षों के बाद यही जनसंख्या बढ़कर 1 अरब 30 करोड़ हो चुकी है और यह जनसंख्या लगातार बढ़ रही है। इस बढ़ती जनसंख्या के कारण चारों तरफ भीड़ और अन्य प्रमुख समस्याएं भारत के सामने खड़ी हो चुकी है। जिसमें प्रमुख है रोजगार की कमी तथा बेरोजगारों की संख्या में लगातार वृद्धि तथा जीवन यापन संबंधी संसाधनों में लगातार कमी हो रही है। ऐसा नहीं है कि आजादी के बाद देश में तरक्की या विकास नहीं हुआ है, लेकिन इस बढ़ती जनसंख्या ने सभी तरक्की और विकास संबंधी कार्यों को ढक दिया है। यह जनसंख्या की समस्या भारत के लिए एक विकराल समस्या का रूप लेता जा रहा है, जो आने वाले समय में यह विकास इत्यादि को भी छोटा करता जा रहा है। जनसंख्या विस्फोट देश के सामने एक अत्यंत ही प्रमुख समस्या के रूप में सामने खड़ी हो चुकी है। बढ़ती हुई जनसंख्या से भारत में खिलाने पिलाने, रोजगार देने और उन्हें एक संतुलित नगर देने में काफी समस्याएं आ रही है। देश में जनसंख्या के कारण खाद्या...

आजादी के महानायक बिरसा मुंडा

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आजादी के महानायक बिरसा मुंडा हमारे देश के आजादी के लिए अनेक लोगों ने बलिदान दिया ।कुछ लोगों के बलिदान इतिहास के पन्नों में दब गए, इनमें से उन लोगों की गाथा इतिहासकारों ने बहुत शोध के द्वारा इनकी कहानियों को जनमानस के बीच लाएं। ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान देश के आजादी को बचाने के लिए दे दिया। झारखंड में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध सबसे जबरदस्त विद्रोह का बिगुल फूंकने वाला आदिवासी समाज था। आदिवासी समाज ने अंग्रेजों के विरुद्ध जल, जंगल और जमीन के लिए लड़ाई छेड़ दी। आदिवासी समाज से अंग्रेजों को भारी विरोध का सामना करना पड़ा। इस आंदोलन का नेतृत्व महान नायक बिरसा मुंडा कर रहे थे। झारखंड में बिरसा मुंडा को भगवान का दर्जा दिया जाता है। उन्होंने पहली बार आदिवासी समाज को इकट्ठा करने का कार्य किया और इस आदिवासी समाज को इकट्ठा करके उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध और उनके अत्याचार के विरुद्ध लड़ाई का बिगुल फूंक दिया। महान बिरसा मुंडा जानते थे कि अंग्रेज आदिवासियों को नहीं, बल्कि पूरे भारत पर कब्जा करना चाहते हैं। यह गरीब आदिवासियों को लालच और भय दिखाकर और उनका धर्म परिवर्तन करने...

हिंदी के विकास में बॉलीवुड का योगदान

हिंदी के विकास में बॉलीवुड का योगदान भारतीय सिनेमा का समृद्ध इतिहास रहा है आज भारतीय सिनेमा  देश विदेश में अपना परचम लहरा रहा है और साथ ही साथ हिंदी का भी इन फिल्मों के द्वारा प्रचार प्रसाद हो रहा है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बॉलीवुड के साथ साथ हिंदी भाषा का भी प्रचार प्रसार विदेशों में हो रहा है। हम देखते हैं कि बॉलीवुड की फिल्में विदेशों में बड़े चाव से देखी जाती है और उतने ही चाव से हिंदी भाषा सीखने के प्रति लोगों के लोगों को जागरुक करने का प्रयास करती हैं। हमें ज्ञात है कि प्रसिद्ध अभिनेता और निर्देशक राज कपूर साहेब रूस में काफी चर्चित कलाकार थे, उन्हें वहां लोग बहुत पसंद करते थे और उनकी फिल्में बड़े चाव से देखते थे। श्री 420, मेरा नाम जोकर आदि फिल्में उनकी रूस में बड़े चाव से देखी जाती थी। और वहां के लोग इन फिल्मों के गाने खूब गाते थे।  मेरा जूता है जापानी, यह पतलून इंगलिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी, यह गाना एक जमाने में रूस में धूम मचा चुका था। आज देखा जाए तो भारतीय फिल्में विदेश में अपने बलबूते पर परचम लहरा रही हैं और हॉलीवुड को कड़ी ...

ग्लोबल होती हमारी हिंदी

  ग्लोबल होती हमारी हिंदी  आज दुनिया के कोने कोने में हिंदी का प्रचार प्रसार इंटरनेट के माध्यम से हो रहा है। आज विश्व के हर कोने में हिंदी बोलने वाले आपको जरूर मिल जाएंगे। चाहे वह कनाडा हो, ब्रिटेन हो, फ्रांस और जर्मनी हो, अमेरिका हो, चाहे वह चाइना हो या जापान हो, सभी जगह हिंदी को महत्व दिया जा रहा है। विश्व के देशों में रहने वाले भारतीयों के द्वारा भारतीय संस्कृति के साथ-साथ भारतीय भाषा के रूप में हिंदी का प्रचार प्रसार अब विश्वव्यापी हो गया है । हिंदी के प्रचार प्रसार में हिंदी फिल्मों का भी बहुत बड़ा रोल है। इन फिल्मों से, हिंदी की ओर अहिंदी भाषी काफी आकर्षित होते हैं और हिंदी सीखने का प्रयास करते हैं। ग्लोबल हिंदी होने में काफी कुछ हमारे इंटरनेट इत्यादि का भी महत्व है। आज दुनिया के अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी को पढ़ाया और सिखाया जा रहा है । कई विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी सीखने वाले छात्रों की संख्या काफी बढ़ रही है। हिंदी देश-विदेश में अलग पहचान बना रही है, क्योंकि चीनी और अंग्रेजी भाषा के बाद हिंदी बोलने वाली की संख्या पूरे विश्व में तीसरे स्थ...

पर्यावरण और विकास

 पर्यावरण और विकास मनुष्य शुरू से ही विकास का पोषक रहा है और ऐतिहासिक काल से ही  कुछ ना कुछ तरीके से अपना विकास करता रहा है। मनुष्य ने अपने विकास के लिए सबसे पहले पहिए का और आग का आविष्कार किया इसके साथ साथ उसने अपने रहने के लिए घर का आविष्कार किया। इस विकास में मानव से ने प्राकृतिक संसाधनों का शुरू से ही दोहन किया। कभी उसने अपने लिए हथियार बनाए तो कभी उसने परमाणु बम बनाए और उसने इसका प्रयोग भी किया। इस विकास में मनुष्य ने यह नहीं देखा कि वह तो विकास कर रहा है, लेकिन वह साथ ही साथ अपना विनाश भी कर रहा है। क्योंकि विकास की कीमत है उसे अपनी सबसे प्यारी चीज पर्यावरण का नुकसान करके या उसके कीमत चुका कर करनी पड़ती है। आज जिधर देखो उधर ही विकास के नाम पर पर्यावरण को हानि पहुंचाई जा रही है मनुष्य यह नहीं समझ पा रहा है कि इस विकास के चक्कर में वह पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, जिसकी कीमत आने वाली पीढ़ियों को चुकानी पड़ेगी।हमें विकास के साथ-साथ पर्यावरण को भी बचाना होगा, क्योंकि बिना पर्यावरण के मनुष्य का, इस पृथ्वी पर रहना मुश्किल है। पर्यावरण को बचाने के लिए हमें ज्यादा ...