पर्यावरण और विकास

 पर्यावरण और विकास
मनुष्य शुरू से ही विकास का पोषक रहा है और ऐतिहासिक काल से ही  कुछ ना कुछ तरीके से अपना विकास करता रहा है। मनुष्य ने अपने विकास के लिए सबसे पहले पहिए का और आग का आविष्कार किया इसके साथ साथ उसने अपने रहने के लिए घर का आविष्कार किया। इस विकास में मानव से ने प्राकृतिक संसाधनों का शुरू से ही दोहन किया। कभी उसने अपने लिए हथियार बनाए तो कभी उसने परमाणु बम बनाए और उसने इसका प्रयोग भी किया। इस विकास में मनुष्य ने यह नहीं देखा कि वह तो विकास कर रहा है, लेकिन वह साथ ही साथ अपना विनाश भी कर रहा है। क्योंकि विकास की कीमत है उसे अपनी सबसे प्यारी चीज पर्यावरण का नुकसान करके या उसके कीमत चुका कर करनी पड़ती है। आज जिधर देखो उधर ही विकास के नाम पर पर्यावरण को हानि पहुंचाई जा रही है मनुष्य यह नहीं समझ पा रहा है कि इस विकास के चक्कर में वह पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, जिसकी कीमत आने वाली पीढ़ियों को चुकानी पड़ेगी।हमें विकास के साथ-साथ पर्यावरण को भी बचाना होगा, क्योंकि बिना पर्यावरण के मनुष्य का, इस पृथ्वी पर रहना मुश्किल है। पर्यावरण को बचाने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधों को लगाना होगा या बचाना होगा, जल संरक्षण करना होगा और वायु को भी बचाना होगा। भूमि भी बहुत प्रदूषण होने के कारण भूमि का संरक्षण भी करना होगा  । पेड़ पौधों के कट जाने के कारण भूमि का भी धीरे-धीरे छरण हो रहा है, जिससे पृथ्वी को काफी नुकसान हो रहा है। मनुष्य विकास की अंधी दौड़ में इतना पागल हो चुका है कि वह अंतरिक्ष को भी प्रदूषित करने से बाज नहीं आ रहा है। अंतरिक्ष में भी उसने विभिन्न प्रकार के सेटेलाइट छोड़कर के अंतरिक्ष को भी, या यूं कहे कि पृथ्वी के वायुमंडल को भी काफी हद तक प्रदूषित कर चुका है। क्योंकि जो सेटेलाइट छोड़ें जाते हैं, वह कुछ टाइम पीरियड तक ही सही होते हैं ,उसके पश्चात वह अपने टाइम पीरियड के बाद डेड हो जाते हैं और जिससे वह पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाते रहते हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि डेड सैटेलाइट काफी मात्रा में पृथ्वी के चक्कर लगा रहे हैं और अंतरिक्ष में कूड़े-कचरे के अंबार अर्थात सेटेलाइट रूपी यह कूड़े-कचरे पूरे पृथ्वी के वायुमंडल में घूम रहे हैं। यह क्या है, क्या हमारे विकास का ही नतीजा है कि हम जितना अधिक सेटेलाइट फेसबुक वायुमंडल में छोड़ रहे हैं, लेकिन एक टाइम पीरियड के बाद यह बेकार हो जाते हैं और उसका निस्तारण हम सही ढंग से नहीं कर पाने के कारण यह सेटेलाइट पृथ्वी के वायुमंडल में बने हुए हैं, तो हम देख रहे हैं कि मनुष्य ने अपने विकास के साथ साथ जल, वायु, भूमि,  आकाश इत्यादि को तो प्रदूषित कर ही चुका है परंतु वह वायुमंडल को भी नहीं छोड़ रहा है यानी अंतरिक्ष में भी अपनी विकास के कारण प्रदूषित कर चुका है।
      कहने का औचित्य यह है कि कि हमें अपने विकास के साथ-साथ, सर्वप्रथम उन कूड़े-कचरे को भी निस्तारण करने का उपाय ढूंढना पड़ेगा, जिससे पृथ्वी के पर्यावरण को नुकसान होता है।इनका सही ढंग से अगर हम निस्तारण नहीं करेंगे तो वह दिन दूर नहीं है, जब पूरी पृथ्वी पर प्लास्टिक के कचरे और अन्य प्रकार के कचरे और प्रदूषण का अंबार होगा और मानव जीवन पर समाप्ति का खतरा मंडरा रहा होगा।  अतः हमें विकास करना है, लेकिन पर्यावरण के कीमत पर हमें अपना विकास नहीं चाहिए। अगर पर्यावरण है तो हम भी हैं, अगर पर्यावरण नहीं है तो हम लोगों का भी कोई अस्तित्व नहीं है । इसलिए पर्यावरण को बचाना बहुत ही आवश्यक है और उसी प्रकार विकास करना है जिससे पर्यावरण सुरक्षित रहे , हम सुरक्षित रहें और यह पृथ्वी सुरक्षित रहे।

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