क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए खतरा

 क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए खतरा


हमारा देश आज कई समस्याओं से जूझ रहा है उनमें से कुछ प्रमुख समस्याएं निम्न हैं- आतंकवाद, जनसंख्या, बेरोज़गारी, जातिवाद, संप्रदायिकता,  पर्यावरण प्रदूषण इत्यादि। लेकिन आज वर्तमान समय में भारत के सामने एक प्रमुख समस्या क्षेत्रवाद मुंह बाये खड़ी है। इससे भारत की संप्रभुता, राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। 

क्षेत्रवाद एवं क्षेत्रीयता वह भावना है जिसके द्वारा राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा करके अपने क्षेत्रीय हितों को पूरा करने का प्रयास किया जाता है। क्षेत्रवाद एक ऐसी संकीर्ण विचारधारा है, जिसमें संपूर्ण राष्ट्र के प्रति निष्ठा के स्थान पर उस विशेष क्षेत्र के प्रति ही निष्ठा रखने की भावना जन्म लेती है। क्षेत्रीयता की भावना राष्ट्रीय विकास के मार्ग को अवरुद्ध कर देती है।

 भारत में विभिन्न भाषा, जाति, परंपरा, धर्म और संस्कृति के लोग निवास करते हैं। पूरे विश्व में भारत की पहचान अनेकता में एकता को देखकर लोग आश्चर्य करते हैं। लेकिन कुछ तुच्छ मानसिकता वाले राजनीतिक दल एवं संगठनों द्वारा क्षेत्रीयता की भावना को उभार कर भारत की शांति व्यवस्था को भंग करना चाहते हैं। उन्हें खटकता है कि किस प्रकार विभिन्न जाति, धर्म तथा क्षेत्र के लोग मिलजुल कर कार्य कर रहे हैं तथा देश के विकास में योगदान दे रहे हैं। यह संगठन एवं दल भारत में क्षेत्रीयता कि भावना को धीरे-धीरे इतना उग्र रूप धारण करती जा रही है कि इससे भारतीय लोकतंत्र एवं राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए ही नहीं, भारत के अस्तित्व को भी खतरा उत्पन्न हो गया है।


क्षेत्रवाद के दुष्परिणाम-

 क्षेत्रवाद एक राष्ट्र के लिए कोढ़ के समान हैं।इससे उत्पन्न होने वाले दुष्परिणाम निम्नवत हैं।

1. संकीर्ण क्षेत्रवादी भावना के चलते राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है।     इससे देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच तनाव एवं संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

2. क्षेत्रवाद की भावना को कुछ स्वार्थी नेता एवं क्षेत्रीय संगठन उभार कर देश में एक घृणात्मक माहौल बनाते हैं।

3.  क्षेत्रवाद के कारण विभिन्न क्षेत्रों के मध्य दिन प्रतिदिन तनाव बढ़ता ही जा रहा है। यह तनाव राष्ट्रीय प्रगति में बाधक बन रहे हैं।

4.  क्षेत्रवाद की भावना ने भाषा की समस्या को ही जटिल बना दिया है। क्षेत्र अपने क्षेत्रीय भाषा के आगे राष्ट्रीय भाषा की भी उपेक्षा कर रहे हैं।

5.  क्षेत्रीयता के कारण क्षेत्रीय राजनीतिक दल का विकास हुआ है। जिससे राष्ट्रीय राजनीति में कभी-कभी भयंकर और अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। 




क्षेत्रवाद के दोषों को समाप्त करने के उपाय

1. देश के नागरिकों को स्वयं किसी क्षेत्र विशेष का नहीं समझना चाहिए। अपने आप को भारतीय समझना चाहिए और स्वयं को भारतीय कहने में गर्व का अनुभव करना चाहिए।

2 .प्रत्येक नागरिक को अपने देश एवं प्रदेश की संस्कृति का सम्मान करना चाहिए।

3. प्रत्येक नागरिक को चाहिए कि वह राष्ट्रीय हित को पहली प्राथमिकता दें एवं क्षेत्रीय हित को कम से कम प्राथमिकता दें।

4. सरकार को कानून बनाकर क्षेत्रीयता  की भावना का प्रचार प्रसार करने वाले व्यक्तियों राजनीतिक दलों एवं संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।

5. राष्ट्रभाषा के प्रचार प्रसार के लिए यथासंभव प्रयास किया जाना चाहिए।

6. रेडियो, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा क्षेत्रीयता के भावना के विरुद्ध प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए।


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