Mobile w iternet sey youo ki bikharti duniya/ मोबाइल व इंटरनेट से युवाओं की बिखरती दुनिया
मोबाइल व इंटरनेट से युवाओं की बिखरती दुनिया
मोबाइल की फंतासी दुनिया का सम्मोहन युवायों तेजी से अपनी गिरफ्त
में ले रहा है । आज के युवाओं का आपस में संवाद इंटरनेट के सोशल नेटवर्किंग साइट
के जरिए हो रहा है। उनकी समाजिक दुनिया इंटरनेट व मोबाईल तक ही सिमट कर रह गयी है।
आज 30 फीसदी युवा मोबाइल व कम्प्यूटर के जरिये अश्लील साहित्य और महिला मित्रों की
तसवीरें आपस में अदला-बदली या भेजते है ।
हमारे देश में
भी इंटरनेट ने समाजिक संबंधों के प्रत्यक्ष संवाद को घुन की तरह चाटना शुरु कर
दिया है। मुंबई में ऐसे कई इंटरनेट एडिक्टेड क्लिनिक की शुरुवात भी हो चुकी है।
जहाँ दर्जनों अभिभावक अपने इंटरनेट व्यसनी बच्चों एवं युवाओं के इलाज के लिए
पहुँचते हैं। इंटरनेट प्रयोग के मामले में भारत आज एशिया में दूसरा तथा विश्व में तीसरा
देश है। साथ ही इंटरनेट प्रयोग करने वाली 85 फीसदी आबादी यहाँ 14 से 40 आयु के बीच
है, जिसमें युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। युवाओं का यह वर्ग जो नेट सर्च,
ई-मेल, फेसबुक, ट्वीटर एवं व्हाट्सएप पर जुटे रहने के कारण समाज के वास्तविक
संबंधों से धीरे-धीरे कट रहा है।
आज के सूचना
क्रांति के युग में इंटरनेट ने परिवार और उसकी सामूहिकता को विखंडित किया है,
जिसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव युवाओं पर पड़ रहा है। शारीरिक खेल-कूद में व्यस्त
रहने वाला युवा अब कम्प्यूटर, इंटरनेट, टीवी व वीडियो गेम जैसे संचार माध्यमों की
दुनिया में फंस गया है। देखने में आता है कि छोटी-छोटी बात पर आज के युवा उग्र हो
जाते है। हर चीज तुरंत पाने की ख्वाहिश में अपराध करने में जरा भी नहीं सोचते। आज
युवाओँ को इंटरनेट के दुष्प्रभाव के बारे में समझाने की सलाह देने एवं उनके
सामाजिक जीवन की दिशा क्या होनी चाहिए? माता-पिता को फुर्सत नहीं है। आज का शहरी युवा सभी कुछ
रहते हुए भी एकांकी होते जा रहे हैं। ऐसे में शहरी युवा के लिए इंटरनेट का ही
विकल्प बचता है। इंटरनेट की वर्चुअल दुनिया युवाओँ में सामूहिक और मानवीय
संवेदनाओं के पक्ष को गायब करके उनमें निहायत काल्पनिक, स्वकेंद्रित और रोमांचक
उत्तेजना देने वाले पक्ष को प्रभावी बना देते हैं। युवाओं के एकाकी जीवन में
रोमांचित उत्तेजना पैदा करने वाले ये संचार माध्यम ही उनके सच्चे मित्र का कार्य
कर रहे है, जो वास्तविक दुनिया से परे सुख की अनुभूति करा रहे हैं। आज इंटरनेट की
दुनिया युवाओं को प्रतिस्पर्धात्मक तो बना रही है, परन्तु कभी-कभी यह हिंसक रुप
में सामने आ रही है।
आज इंटरनेट से
जुड़े लोगों का एक नया समाज बन रहा है। इस समाज में प्रेम, बंधुत्व, मनुष्यता,
सहानुभूति व मानवीय संवेदना जैसे मूल्यों का अभाव साफ दिखाई दे रहा है। युवाओं में
इंटरनेट व मोबाइल के चलते उपज रहा द्वंद्त्मक तनाव गंभीर चिंता का विषय है। युवाओं
में इंटरनेट का ऋणात्मक प्रभाव को खत्म करने के लिए जरुरी है कि उन्हें शारीरिक
गतिविधियों में व्यस्त किया जाए। माता-पिता को अपने बच्चों से संवाद बढ़ाना चाहिए।
आज बेशक इंटरनेट और मीडिया के प्रभाव से बचाव मुश्किल है लेकिन प्रत्यक्ष संवाद के
जरिए युवाओं में इंटरनेट व मोबाइल के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके लिए
जरुरी है कि पहले उन्हें सामाजिक संबंधों का ऊष्मा से परिचित कराया जाए, फिर उनका
इंटरनेट से परिचय हो।
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