Munsi Premchand, मुंशी प्रेमचंद : मेरे प्रिय लेखक


मुंशी प्रेमचंद: मेरे प्रिय लेखक

किसी भाषा के उन्नयन में उस भाषा के लेखकों का हाथ होता है। हिंदी भाषा के विकास में तुलसीदास,भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद जैसे धन्य लेखकों का योगदान रहा है। हिंदी को लोकप्रिय कथा साहित्य से समृद्ध करने वाले गिने-चुने लेखकों में मुंशी प्रेमचंद का नाम लिया जाता है। प्रेमचंद ने भारतीय समाज को अंधविश्वासी और रूढ़िवादी परंपराओं से लड़ने के लिए ना केवल प्रेरित किया, अपितु उसे एक दिशा भी दिया। अपने उपन्यासों, कथाओं तथा साहित्य द्वारा मानवीय करुणा, मानवीय गरिमा, मानवीय स्वतंत्रता आदि मान्यताओं एवं दृष्टिकोण की नई व्याख्या की। प्रेमचंद की कहानियों से हमें संवेदना के धरातल पर अपने देश और समाज को समझने में पूरी पूरी मदद मिलती है।
Munsi premchand
मुंशी प्रेमचंद
 प्रेमचंद का जन्म  31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय था। इनके पिता श्री अजायब राय तथा माता आनंदी देवी थी। इनके पिताजी एक सरकारी डाकखाने में क्लर्क थे। प्रेमचंद की आयु जब 7 वर्ष की थी, तभी उनकी माता का देहांत हो गया। 15 वर्ष की आयु तक इनके पिता भी स्वर्गवासी हो गए। प्रेमचंद की प्रारंभिक पढ़ाई गांव के प्राइमरी स्कूल से आरंभ हुई और अनेक कठिनाइयों को पार करते हुए मैट्रिकुलेशन की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की। इसी बीच पिताजी का स्वर्गवास हो गया तथा इन्हें अपनी पढ़ाई आदि का खर्चा चलाने के लिए ₹5 प्रति माह का ट्यूशन करना पड़ा। नौकरी करते हुए उन्होंने बीए की परीक्षा पास की। 15 वर्ष की अवस्था में प्रेमचंद का विवाह हुआ। परंतु पहली पत्नी के संग  ज्यादा दिन तक  संबंध नहीं रह पाए  और  उन्होंने  पहली पत्नी को त्याग करके दूसरा विवाह किया। पहली पत्नी को त्याग कर प्रेमचंद ने दूसरा विवाह बाल विधवा शिवरानी के साथ किया। शिवरानी प्रेमचंद के लिए अद्भुत जीवनसंगिनी सिद्ध हुई।

      प्रेमचंद जी पहले एक वकील के पास ₹5 माहवार पर ट्यूशन करते थे। फिर ₹18 माहवार पर सरकारी अध्यापक हुए। वहां से डिप्टी इंस्पेक्टर के पद पर पहुंच गए। सन 1920 में गांधीजी के प्रभाव के कारण उन्होंने अपनी 20 वर्ष पुरानी नौकरी छोड़ दी तथा असहयोग आंदोलन में कूद पड़े और जेल गए। उसके बाद उन्होंने संपादन के क्षेत्र में प्रवेश किया तथा माधुरी, हंस, जागरण और मर्यादा जैसी उच्च कोटि की पत्रिकाओं का संपादन किया। प्रेमचंद कुछ समय के लिए मुंबई के फिल्म क्षेत्र में भी गए, लेकिन उनका यह प्रयास भी असफल रहा और लौट कर वापस साहित्य की दुनिया में रम गए।
      प्रेमचंद का प्रारंभिक जीवन बड़ी कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। बचपन में ही मां का निधन, फिर  विमाता द्वारा प्रताड़ित किया जाना, किशोरावस्था में पिता की मृत्यु आदि घटनाओं ने प्रेमचंद को गरीबी को काफी निकट से देखने का अवसर प्रदान किया। आर्थिक तंगी ने उन्हें साहूकारों के निकटता दी तो माता-पिता के मृत्यु ने सामाजिक निकटता दी।इससे प्रेमचंद के मन मस्तिष्क पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा। जिसका प्रभाव हम सभी प्रेमचंद जी के साहित्य पर देखते हैं।  निर्भीकता, मुखरता,  विद्रोह का जो उनके साहित्य में मिलता है, वह किसी अन्य के साहित्य में नहीं मिलता।  गरीबी में जीने के कारण, उनके कथा साहित्य में गरीबी का यथार्थ चित्रण मिलता है। विधवा विवाह, बेमल विवाह, गरीबों का शोषण, साहूकारी प्रथा, अंधविश्वास तथा गांव में प्रचलित छिटपुट रूढ़िवादी मान्यताओं के प्रति उनका विद्रोह उनके कथा साहित्य में पूरी तरह उजागर होता है।
      प्रेमचंद शुरू में उर्दू में लिखा करते थे, परंतु बाद में वह हिंदी में लिखने लगे। उर्दू में उन्होंने धनपत राय एवं नवाब राय नाम से रचनाएं लिखी।हिन्दी में उनका लेखन प्रेमचंद नाम से ही लिखा करते थे। कुछ कहानियां धनपत राय एवं नवाब राय से भी लिखी गई हैं। उनके कुछ उपन्यास सेवासदन,निर्मला, कर्मभमि, रंगभूमि, कायाकल्प, प्रतिज्ञा, गोदान आदि है। मृत्यु के समय  मंगलसूत्र नामक उपन्यास लिख रहे थे, जो अधूरा ही रह गया था। कफन, मानसरोवर, प्रेम पच्चीसी, प्रेम सरोवर प्रेम प्रतिज्ञा, सप्त सरोज, नव निधि उनके प्रमुख कहानी संग्रह है। उन्होंने संग्राम, कर्बला, रूठी रानी तथा प्रेम की बेटी जैसी जैसे नाटक की भी रचना की।
      प्रेमचंद वास्तव में एक प्रगतिशील लेखक थे। उनके संपूर्ण साहित्य में समाजवादी विचारों की झलक मिलती है। वह सौंदर्यवादी ना होकर यथार्थवादी थे। साहित्यकार की संकुचित सौंदर्य दृष्टि की आलोचना करते हुए हुए कहा करते थे कि आज का साहित्यकार रूपवती स्त्री के गुलाबी गालों के सौंदर्य का वर्णन करना चाहता है किंतु उस श्रमिक स्त्री की ओर निगाह उठाकर भी नहीं देखता जो अपने दूध मुहे बच्चे को खेत के मेड़ पर सुलाकर काम करते हुए, चोटी का पसीना एड़ी तक बहा रही है। प्रेमचंद ने अपने साहित्य द्वारा तत्कालीन समाज को झकझोर कर कर रख दिया था। स्वतंत्रता संग्राम में उनकी पूरी दिलचस्पी थी और वह गांधी जी के विचारों से प्रेरित थे। सेवासदन और गोदाम को छोड़कर उनके सभी उपन्यासों में गांधी युग का समग्र चित्रण है। आजादी के लड़ाई के प्रति उनके रुझान को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उनकी पुस्तक सोजे वतन को जप्त कर लिया था। किंतु प्रेमचंद के विचारों में कोई परिवर्तन ना हुआ, उल्टे उन्होंने शिक्षा विभाग की डिप्टी इंस्पेक्टर से इस्तीफा देकर स्वतंत्र लेखन करने का विचार किया। प्रेमचंद ने अपनी कहानियों एवं उपन्यासों के माध्यम से मानवीय करुणा, मानवीय गरिमा, मानवीय स्वतंत्रता की आकांक्षा, मान्यताओं एवं दृष्टिकोण की नई व्याख्या प्रस्तुत की है। प्रेमचंद की कहानियों से हमें संवेदना के धरातल पर अपने देश और समाज, उसके ढांचे तथा इतिहास को समझने में पूरी पूरी मदद मिलती है।
 प्रेमचंद का साहित्य समकालीन संदर्भ की कसौटी पर भी खरा उतरता है। इसका कारण बहुत सीधा सा है प्रेमचंद ने जिस भारत की अपनी रचनाओं में चित्रण किया है, वह कमोवेश अब भी वही है। कफन, पूस की रात जैसी कहानियों में गरीबी में पीसते लाखों गरीबों का सशक्त चित्रण प्रेमचंद ने अपने इन कहानियों में किया है।
     इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रेमचंद नए युग के प्रवर्तक, समाज सुधारक तथा सामाजिक चिंतन करने वाले लेखक थे। उनके प्रत्येक साहित्य लेखन और कहानी में कोई ना कोई संदेश समाज के लिए अवश्य रहता था। आज के इस दौर में, प्रेमचंद जैसे लेखकों की अति आवश्यकता है, जो समाज का सही चित्रण कर सके और लोगों को सामाजिक परिस्थितियों के संबंध में या कठिनाइयों के संबंध में उन्हें आईना दिखा सकें।

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  1. Thank you for sharing very useful information on Nibandh Hindi Mein and keep share more information.

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